बियर आ ताड़ी भाई-भाई

बियर आ ताड़ी भाई-भाई


कुछ चीज सबदिनमा जरूरत के होई छई। जेना कि रोटी, कपड़ा-लता, घर और प्यार। लेकिन जेकरा सब के इ चीज न मिल पबइ छइ ओकरा रात में निसा चाही। 

निसा के कोनो वर्ग न होई छई। निसा त निसा हई, चाहे उ प्यार के होए तब आ यार के होए तब।
10 रूपइया के दारूओ निसे कहतई आ 10 लाख के शैंपेनो निसे कहअतई। 
फरक होई छइ त खाली चाल-चलन के। 
कोनो निसा में लइकी से छेड़छाड़ करी छई त कोनो, रस्ता के बगल में चुपचाप सुत जाई छई। 

एगो दारू के दोकान में बैकोपाइपर मिलइ छई आ हंड्रेडो पाइपर। ई त खरीदे बला के मन पर हई आ अहु पर की ओकरा जेबी में केते ढेउआ हई।



ताड़ी के कथी कहबहु? धनकहबा सब के निसा की कमजोरका सब के निसा? 
ई त खजूर चाहे ताड़ के पेड़ से निकलल सोमरस हइ। ई हमनी के निसा के जरुरत के पूरा करे बला एगो पुरनका देसी तरीका हई।



जखनी यूरोप बियर पीईत रहलई, ओखनी हमनी के इहां लोग ताड़ी पीईत रहलई। बियरे के लेखा, ताड़ीयो के ओतने पिहु त ओतने निसा लगतो।
बियरो ओतने महकी छई, जेतना ताड़ी, उहो ओतने कड़ा लगइ छई, जेतना बियर। 
फरक खाली एतना हई कि बियर के बजार मिललई, आ ताड़ी देसी बन के रह गेलइ। 
ओहने जेना खादी के कपड़ा के  बजार न मिललई।

मूल लेख फेसबुक पेज Bikramganj Calling से लेल गेल हई। 
भोजपुरी लेखक: Akhil Priyadarshi 
बज्जिका अनुवाद: Bhupendra Kumar

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